आरज़ू कहते हैं इसे,
हठ्ठि है ये बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|
मन की सिपाही है,
सीना ताने दंट्के खड़ी,
हार बहुत देखी है इसने,
पर हार ये माने नहीं|
कह सकते हैं महामारी है,
मुश्किल है मिटाना जो एक बार लगती,
बस जाए जड़ें बनाकर,
नशे सी ये रूह में रीस्ती|
हक़ीक़त से मूह मोड़ना ये जाने,
शीशमहल ख्वाबों में बनवाए,
पंख बाँटती मुफ़्त में हर ख्वाब को,
भ्रम के टूटने से इसे कहाँ खरोंच आए|
ईंधन है ये कभी दौड़ाए कभी जलाए,
हवा में खेल दिखाए,
सोच से बड़ी एक दुनिया से रूबरू कराए,
लेकिन डूबे तो साथ सब कुछ डूबाए|
हमेशा होगी कहीं छिपते छिपाते,
नकारो चाहे जितना, चाहे जितना करो चूर,
हर ख़याल में बसी,
यह आरज़ू न होगी दूर|
आरज़ू कहते हैं इससे,
हठ्ठि है यह बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|
- © Haem Roy
हठ्ठि है ये बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|
मन की सिपाही है,
सीना ताने दंट्के खड़ी,
हार बहुत देखी है इसने,
पर हार ये माने नहीं|
कह सकते हैं महामारी है,
मुश्किल है मिटाना जो एक बार लगती,
बस जाए जड़ें बनाकर,
नशे सी ये रूह में रीस्ती|
हक़ीक़त से मूह मोड़ना ये जाने,
शीशमहल ख्वाबों में बनवाए,
पंख बाँटती मुफ़्त में हर ख्वाब को,
भ्रम के टूटने से इसे कहाँ खरोंच आए|
ईंधन है ये कभी दौड़ाए कभी जलाए,
हवा में खेल दिखाए,
सोच से बड़ी एक दुनिया से रूबरू कराए,
लेकिन डूबे तो साथ सब कुछ डूबाए|
हमेशा होगी कहीं छिपते छिपाते,
नकारो चाहे जितना, चाहे जितना करो चूर,
हर ख़याल में बसी,
यह आरज़ू न होगी दूर|
आरज़ू कहते हैं इससे,
हठ्ठि है यह बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|
- © Haem Roy
11th Jan, 2013.
No comments:
Post a Comment