Jan 11, 2013

Aarzoo kehte hain isse

आरज़ू कहते हैं इसे,
हठ्ठि है ये बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|

मन की सिपाही है,
सीना ताने दंट्के खड़ी,
हार बहुत देखी है इसने,
पर हार ये माने नहीं|

कह सकते हैं महामारी है,
मुश्किल है मिटाना जो एक बार लगती,
बस जाए जड़ें बनाकर,
नशे सी ये रूह में रीस्ती|

हक़ीक़त से मूह मोड़ना ये जाने,
शीशमहल ख्वाबों में बनवाए,
पंख बाँटती मुफ़्त में हर ख्वाब को,
भ्रम के टूटने से इसे कहाँ खरोंच आए|

ईंधन है ये कभी दौड़ाए कभी जलाए,
हवा में खेल दिखाए,
सोच से बड़ी एक दुनिया से रूबरू कराए,
लेकिन डूबे तो साथ सब कुछ डूबाए|

हमेशा होगी कहीं छिपते छिपाते,
नकारो चाहे जितना, चाहे जितना करो चूर,
हर ख़याल में बसी,
यह आरज़ू न होगी दूर|

आरज़ू कहते हैं इससे,
हठ्ठि है यह बड़ी,
छिपा के रख दिया था कहीं,
एक दिन अचानक ही उठ पड़ी|

© Haem Roy
11th Jan, 2013.

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